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लम्हे

Jazbaat
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सफ़र-ए-ज़ीस्‍त में छल गए लमहे

रह गई यादें बिछड़ गए लमहे।

पलक बिछाए उनकी यादों में

नर्म गलीचों पे ख़ल गए लमहे।

कोई पाया पनाह बाहों में

जल गए लोग, जल गए लमहे।

कुछ एक यादगार लमहों पर

लगा ऐसा ठहर गए लमहे।

जब भी दर्पण के रू-ब-रू देखा

लगा कि हाय! निकल गए लमहे।

कहा सफ़ेद चंद बालों ने

कट गई उम्र रह गए लमहे।

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